Wednesday, September 26, 2018

49 दिनों तक समंदर में बिना खाना और पानी के, 'लाइफ़ ऑफ़ पाई' जैसी असली कहानी

एक टूटी हुई नाव में अनजान समंदर के बीचों-बीच 49 दिनों तक रहना. वो भी बिना खाना और पानी के. क्या ये आपको 'लाइफ़ ऑफ़ पाई' या किसी ऐसी ही फ़िल्म की याद दिलाता है?
ये किसी फ़िल्म की नहीं बल्कि असली कहानी है.
18 साल के आल्दी नोवेल आदिलांग जुलाई महीने में इंडोनेशियाई समुद्र तट से तक़रीबन 125 किलोमीटर की दूरी पर एक 'फ़िशिंग हट' यानी मछली पकड़ने के लिए बनी झोपड़ीनुमा नाव में थे. इसी समय अचानक तेज़ हवाएं चलने लगीं और नाव का लंगर टूट गया.
नतीजा, आल्दी की फ़िशिंग हट बेकाबू हो गई और हज़ारों किलोमीटर दूर गुआम के पास जाकर रुकी. हालात ऐसे थे कि आल्दी का ज़िंदा बचना मुश्किल था लेकिन ख़ुशकिस्मती से पनामा के एक जहाज़ ने उन्हें 49 दिनों बाद सुरक्षित बचा लिया.
इंडोनेशियाई के सुलावेसी द्वीप समूह के रहने वाले आल्दी एक 'रोम्पॉन्ग' पर काम करते थे. रोम्पॉन्ग मछली पकड़ने वाली एक नाव होती है जो बिना किसी पैडल या इंजन के चलती है.
इंडोनेशिया के 'जकार्ता पोस्ट' अख़बार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, आल्दी का काम नाव पर उस ख़ास लैंपों को जलाना और उनकी देखरेख करना था जिसकी वजह से मछलियां नाव की तरफ़ आकर्षित होती हैं.
मछली पकड़ने के लिए बनाए इस झोपड़ीनुमा नाव को समंदर में रस्सियों के सहारे चलाया जाता है.
14 जुलाई को जब तेज़ हवाओं की वजह से आल्दी की नाव बेकाबू हुई, उनके पास बहुत कम खाना बचा था. ऐसी स्थिति में उन्होंने हिम्मत और सूझबूझ से काम लिया. आल्दी ने मछलियां पकड़ीं और नाव पर बने लकड़ियों के बाड़ जलाकर उन्हें पकाया.
जापान में मौजूद इंडोनेशिया के राजनायिक फजर फ़िरदौस ने 'द जकार्ता पोस्ट' को दिए इंटरव्यू में बताया कि इन 49 दिनों में आल्दी बुरी तरह डरे रहते थे और वो अक्सर रोया करते थे.
फजर फ़िरदौस के मुताबिक़, "आल्दी को जब भी कोई बड़ा जहाज़ दिखता, उनके मन में एक उम्मीद जग जाती. 10 से ज़्यादा जहाज़ उनके रास्ते से गुज़रे लेकिन न तो किसी की नज़र उन पर पड़ी और न ही कोई जहाज़ रुका."
आल्दी की मां ने समाचार एजेंसी एएफ़पी को बताया कि उन्हें अपने बेटे के ग़ायब होने का पता कैसे चला.
उन्होंने कहा, "आल्दी के बॉस ने मेरे पति को बताया कि वो लापता हो गया है. इसके बाद हमने सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया और उसकी सलामती के लिए लगातार दुआएं मांगते रहे." अगस्त को आल्दी ने अपने पास एक पनामा का एक जहाज़ देखा और आपातकालीन रेडियो सिग्नल भेजा.
इसके बाद जहाज़ के कैप्टन ने गुआम के कोस्टगार्ड से संपर्क किया. कोस्टगार्ड ने जहाज़ के क्रू को निर्देश दिया कि वो आल्दी के अपने गंतव्य तक यानी जापान लेकर जाएं.
आल्दी 6 सितंबर को जापान पहुंचे और दो दिन बाद उन्होंने इंडोनेशिया के लिए उड़ान भरी. इसके बाद आख़िरकार वो अपने परिवार से मिला. बताया जा रहा है उनकी सेहत अच्छी है.
आल्दी की मां ने कहा, "अब वो वापस आ गया है. 30 सितंबर को उसका जन्मदिन है, वो 19 साल का हो जाएगा. हम जश्न की तैयारी में हैं."
भारत के ख़ूबसूरत पर्यटक स्थल शिमला के फ़ैशनेबल मॉल रोड पर देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़ों के साये में स्थित बुक कैफ़े में नौजवान छात्र-छात्राएं ख़ामोशी से किताबों में खोए हुए हैं.
कई नौजवान कैफ़े के काउंटर से सैंडविचेज़, कॉफी, बर्गर जैसी चीज़ें ख़रीद रहे हैं. ये कैफ़े आजीवान कारावास की सज़ा काट रहे दो क़ैदी- योगराज और कुलदीप चला रहे हैं. यहां जो खाने-पीने की चीज़ें होती हैं वो भी जेल के क़ैदियों ने ही तैयार की हैं.
योगराज को एक व्यक्ति के क़त्ल के जुर्म में उम्र क़ैद की सज़ा हुई थी. वो पिछले एक बरस से उम्र क़ैद की सज़ा पाए एक दूसरे क़ैदी के साथ मिल कर ये कैफ़े चला रहे हैं.
योगराज ने नर्म लहजे में बताया, "पहले हम जेल की चारदीवारी में बंद रहते थे. आपस में ही बात किया करते थे, लेकिन जब से यहां आ रहे हैं और आम लोगों से बात कर रहे हैं, हमें बहुत अच्छा लग रहा है."
उनके साथ काम करने वाले कुलदीप कहते हैं, "ऐसा लगता है जैसे एक नया जीवन मिल गया हो."
कैफ़े में एक छोटा-सा नोटिस बोर्ड लगा हुआ है, जिस पर लिखा हुआ है कि ये कैफ़े सज़ायाफ्ता क़ैदियों द्वारा चलाया जाता है.
यहां आने वाले स्थानीय लोगों को भी पता है कि यहां काम करने वाले क़ैदी हैं.
इस कैफ़े में आने वाली शीतल कंवर कहती हैं, "मैंने सुना है कि ये कैफ़े जेल के क़ैदी चला रहे हैं. ये बहुत अच्छी बात है."

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